अरब जगत में एक बार फिर युवाओं की आवाज गूंज रही है। नेपाल में सत्ता पलटने वाले ‘जेन जेड’ प्रदर्शनों की लहर अब उत्तरी अफ्रीका के देश मोरक्को तक पहुंच चुकी है। यहां के युवा ‘जेन जेड 212‘ आंदोलन के बैनर तले सड़कों पर उतर आए हैं और शिक्षा, स्वास्थ्य, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर कर रहे हैं। इस बढ़ते हुए आक्रोश के बीच, सभी की निगाहें आज किंग मोहम्मद VI पर टिकी हैं, जो संसद के उद्घाटन सत्र में एक अत्यंत महत्वपूर्ण भाषण देने वाले हैं।
क्या है ‘जेन जेड 212’ आंदोलन?
यह आंदोलन मोरक्को के युवाओं का एक स्वतःस्फूर्त प्रदर्शन है, जिसका नाम देश के डायलिंग कोड +212 से प्रेरित है।
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शुरुआत: यह आंदोलन 27 सितंबर से शुरू हुआ और अब तक देश के दर्जनों शहरों में फैल चुका है।
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संगठन का तरीका: नेपाल के युवाओं की तरह, मोरक्को के युवा भी टिकटॉक और डिस्कॉर्ड जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के जरिए संगठित हुए हैं।
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ऐतिहासिक महत्व: 2011 की ‘अरब स्प्रिंग’ क्रांति के बाद इसे मोरक्को में युवाओं का सबसे बड़ा और सबसे व्यापक आंदोलन माना जा रहा है।
युवाओं की मांगें क्या हैं?
प्रदर्शनकारी युवा स्पष्ट और ठोस मांगों के साथ सामने आए हैं। उन्होंने राजा को एक खुला पत्र भी लिखा है, जिसमें मुख्य रूप से निम्नलिखित बातें शामिल हैं:
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सरकार का विरोध: प्रधानमंत्री अजीज अखनाउच की सरकार को तुरंत हटाने की मांग।
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भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई: भ्रष्ट नेताओं और अधिकारियों को कठोर सजा दिलाने और इसके लिए एक स्वतंत्र मंच स्थापित करने की मांग।
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राजनीतिक कैदियों की रिहाई: जेलों में बंद सभी राजनीतिक कैदियों को तुरंत रिहा किया जाए।
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सार्वजनिक धन का सही इस्तेमाल: युवा 2030 फीफा विश्व कप की तैयारियों पर अरबों डॉलर खर्च करने के सख्त खिलाफ हैं। उनका तर्क है कि इस पैसे को देश की टूटती शिक्षा और स्वास्थ्य प्रणालियों को सुधारने पर खर्च किया जाना चाहिए।
राजा के समक्ष चुनौती और उम्मीदें
मोरक्को में राजा की आलोचना करना गैरकानूनी है, और युवाओं ने भी अपने पत्र में राजा को “देश की सबसे बड़ी ताकत” बताया है। इससे साफ जाहिर है कि वे सीधे राजशाही व्यवस्था को चुनौती नहीं दे रहे, बल्कि सरकार के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं।
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‘गरीबों का राजा’ का चश्मा उतरा: एक समय किंग मोहम्मद VI को ‘गरीबों का राजा’ कहा जाता था, लेकिन अब जनता धीमे विकास और बढ़ती आर्थिक असमानता से नाराज है।
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राजा का पिछला वादा: जुलाई में एक भाषण में राजा ने कहा था, “मैं तब तक संतुष्ट नहीं होऊंगा, जब तक हमारी उपलब्धियां हर वर्ग और हर इलाके के लोगों की जिंदगी को बेहतर न बना दें।” अब युवा चाहते हैं कि वह इस वादे को पूरा करें।
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बुद्धिजीवियों का समर्थन: आंदोलन को 60 वरिष्ठ बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं के समर्थन से भी बल मिला है, जिन्होंने कहा है कि सिर्फ प्रधानमंत्री को बदलने से काम नहीं चलेगा, बल्कि देश की गहरी समस्याओं का समाधान करना होगा।